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आम आदमी पार्टी बन गई ‘खास आदमी पार्टी’, सिर्फ सवर्ण पुरुषों को मिला राज्यसभा टिकट

आम आदमी पार्टी बन गई ‘खास आदमी पार्टी’, सिर्फ सवर्ण पुरुषों को मिला राज्यसभा टिकट राज्यसभा चुनाव : केजरीवाल को सिर्फ सवर्ण पुरुषों में दिखा टैलेंट, दलित-पिछड़े, मुस्लिम और महिलाओं की नो-एंट्री !

पंजाब में सरकार बनाने वाली आम आदमी पार्टी आजकल शहीद भगत सिंह और बाबा साहब डॉ आंबेडकर की तस्वीरों का खूब इस्तेमाल कर रही है। पंजाब में क़रीब 32 % दलित आबादी के बड़े हिस्से ने भगवंत मान को सीएम बनाने में बड़ी भूमिका निभाई है इसलिए ख़ासकर बाबा साहब को लेकर अरविंद केजरीवाल खूब सक्रिय हैं, बाबा साहब के जीवन संघर्ष को ‘नाटक’ कहकर उसे दिखाया भी जा रहा है लेकिन जब भागीदारी की बात आती है तो अरविंद केजरीवाल को सवर्ण जाति के नेताओं में सबसे ज़्यादा टैलेंट नज़र आता है और वो दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों और महिलाओं को सत्ता में भागीदार नहीं बनाते। 

आम आदमी पार्टी बन गई 'खास आदमी पार्टी'

5 लोगों को राज्यसभा भेज रही है AAP

आम आदमी पार्टी ने पंजाब से 5 नए लोगों को राज्यसभा भेजने का फ़ैसला लिया है। इन पाँच नामों में – दिल्ली से आप विधायक राघव चड्ढा, मशहूर क्रिकेटर हरभजन सिंह, कारोबारी संजीव अरोड़ा, कारोबारी अशोक मित्तल और पंजाब में आम आदमी पार्टी के थिंक टैंक में शामिल डॉ संदीप पाठक शामिल हैं।

दलित, पिछड़े, मुसलमान, महिलाओं को भागीदारी नहीं 

राज्यसभा जाने वाले इन पाँचों नेताओं में से एक भी दलित नहीं है। अरविंद केजरीवाल को पिछड़े समाज से भी कोई ऐसा नेता नहीं मिला जिसे राज्यसभा में भेजा जा सके। इस लिस्ट में ना ही कोई मुसलमान है और ना ही कोई महिला। ख़ुद को शहीद भगतसिंह और बाबा साहब डॉ आंबेडकर के सिद्धांतों पर चलने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल ने दलित-पिछड़े समाज को कोई भागीदारी नहीं दी। उन्हें बस सारा टैलेंट बनिया, गुप्ता, खत्री जैसे सवर्णों में ही नज़र आया।

बडे़ कारोबारियों को दिये राज्यसभा टिकट

अशोक मित्तल, लवली प्रोफेशनल यूनिवर्सिटी के मालिक हैं। इस प्राइवेट यूनिवर्सिटी में आम आदमी अपने बच्चों को पढ़ाने की सोच भी नहीं सकता लेकिन अरविंद केजरीवाल को अशोक मित्तल आम आदमी नज़र आ रहे हैं। संजीव अरोड़ा भी बड़े कारोबारी हैं लेकिन उन्हें केजरीवाल ने राज्यसभा का टिकट थमा दिया। 

इन सबके अलावा AAP के 3 सदस्य पहले से राज्यसभा में हैं। संजय सिंह, जो राज्यसभा में आप की नुमाइंदगी करते नज़र आ जाते हैं। एन डी गुप्ता जो केजरीवाल की जाति के हैं लेकिन कभी संसद में सामाजिक न्याय या जन सरोकार के मसलों पर बोलते हुए नहीं दिखते। वहीं कारोबारी सुशील गुप्ता भी पहले से राज्यसभा हैं लेकिन उन्हें भी शायद ही किसी ने राज्यसभा में आम आदमी के सवालों पर बोलते हुए किसी ने सुना हो।

पांचों सदस्यों का जीतना तय 

नए पाँचों सदस्यों का राज्यसभा तय है क्योंकि आप ने पंजाब में सरकार बनाई है, इसके बाद राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के सांसदों की संख्या 8 हो जाएगी लेकिन आठों सदस्य सवर्ण पुरुष हैं। यहाँ तक महिलाओं को भी केजरीवाल ने राज्यसभा में जाने नहीं दिया। क्या उन्हें सारी मेरिट सिर्फ़ सवर्ण पुरुषों में ही नज़र आती है ? क्यों अरविंद केजरीवाल जाति और लिंग के आधार पर विविधता का ख़्याल नहीं रखते ? इन सवालों का जवाब तो उन्हें देना ही चाहिए। 

क्या राज्यसभा टिकट के लिए हुई खरीद-फरोख्त ?

राज्यसभा की सीट के लिए सैकड़ों करोड़ की डील की खबरें अक्सर सुर्ख़ियाँ बनती हैं, बड़े-बड़े उद्योगपति एक झटके में टिकट ख़रीद लेते हैं और आम आदमी मन मसोसकर रह जाता है। केजरीवाल पर राज्यसभा की सीट बेचने के आरोप पहले भी लग चुके हैं तो क्या इस बार फिर सीटों की ख़रीद फ़रोख़्त की गई है ? अगर इस सवाल को राजनीति से प्रेरित बताकर ख़ारिज भी कर दिया जाए तो ये सवाल तो ज़रूर पूछा जाएगा कि आम आदमी की पार्टी बनाने का दावा करने वाले अरविंद केजरीवाल ख़ास लोगों को ही क्यों चुन-चुन कर राज्यसभा भेज रहे हैं ? उनके वो आदर्श और सिद्धांत अब कहां गए ? 

सिर्फ तस्वीरों का सहारा, विचारों का क्या ?

अरविंद केजरीवाल की पार्टी को दिल्ली में तो दलितों का खूब साथ मिला ही था लेकिन पंजाब में भी दलित आवाम ने एक दलित मुख्यमंत्री को हराकर AAP के भगवंत मान को सीएम बना दिया। भगवंत मान दफ़्तर में बाबा साहब की फोटो बैकग्राउंड में सज़ाकर बैठे हैं लेकिन उसी पंजाब से दलितों को राज्यसभा में कोई भागीदारी नहीं दी गई। पंजाब कैबिनेट में ज़रूर दलितों को प्रतिनिधित्व मिला है लेकिन राज्यसभा जैसे अहम सदन में किसी दलित, पिछड़े, मुसलमान और महिला को क्यों नहीं भेजा गया ? 

भगवंत मान ने शपथ लेने के बाद अपने भाषण में बाबा साहब का नाम तक नहीं लिया था लेकिन बैकग्राउंड में तस्वीरों को दिखाकर ख़ुद को दलितों का हितैषी घोषित करने की कोशिश हो रही है। बाबा साहब के जीवन पर नाटक दिखाए जा रहे हैं लेकिन असली सवाल भागीदारी का है। ये उस पार्टी का चरित्र है जो राजनीति बदलने आई थी लेकिन हक़ीक़त आप सबके सामने है।

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