क्रोध के जवाब में क्रोध ही किया, तो दोनों का दुख बढ़ेगा ही. तथागत बुद्ध कहते हैं- किसी ने हम पर क्रोध किया, कटु वचन कहे, हमारी हानि की, ईर्ष्या व घृणा करता है और यदि हम भी वही करते हैं तो हमारा और अगले दोनों का दुख बढ़ेगा, दोनों का ही मन अशांत रहेगा.
- यदि हमने माफ कर दिया, मीठे वचन और सदव्यवहार किया तो इससे हमें भी शांति मिलेगी और अगला दुर्गुणी व्यक्ति भी सोचने पर मजबूर होगा. उसका भी सुधार हो सकता है. यदि वह बहुत कठोर है तो कम से कम उसे हमारे सदव्यवहार से संतोष तो जरूर मिलेगा.
राजगृह के सेठ पूर्ण का पूरा परिवार तथागत का उपासकलं था. बेटी उत्तरा तो बहुत ही श्रद्धालु व दानी थी लेकिन उसका विवाह एक दुगुर्णी व कंजूस सेठ के परिवार में हो गया इसलिए वह वहां धम्म सेवा नहीं कर पाने व दुर्व्यवहार के कारण दुखी थी.
एक दिन अपने पिता द्वारा भेजे धन से उसने भिक्षु संघ को भोजन पर आमंत्रित किया, वह सेवा में मग्न थी. लेकिन सभी ने उसके साथ बहुत दुर्व्यवहार किया, यहां तक कि नौकरानी ने भी कलछी फेंक कर अपमान कर दिया. लेकिन उस समय वह चुप रही.
भगवान बुद्ध की वाणी को व्यवहार में उतारने वाली कन्या उत्तरा ने धीरे धीरे अपने सदव्यवहार से ससुराल वालों का दिल जीत लिया. बाद में पूरे परिवार ने भगवान बुद्ध से माफी मांगी. भगवान ने उत्तरा के सद्व्यवहार की प्रशंसा कर यह गाथा कही-
अक्कोधेन जिने कोधं, असाधु साधुना जिने ।
जिने कदरियं दानेन, सच्चेन अलिकवादिनं ।।.. धम्मपद
- अर्थात – अक्रोध से क्रोध को जीते, असाधु (बुराई) को साधु (भलाई) से जीते. कंजूस को दान से जीते और झूठ बोलने वाले को सत्य से जीते.
सबका मंगल हो…सभी प्राणी सुखी हो