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जातियाँ तोड़कर एक समतामूलक समाज बनाने का बाबासाहेब का संकल्प | Br.Ambedkar के अनमोल विचार

जातियाँ तोड़कर एक समतामूलक समाज बनाने का बाबासाहेब का संकल्प Br.Ambedkar ने 23 सितम्बर 1917 को गुजरात के वडोदरा में लिया आज हम ईस पोस्ट के माध्यम से बाबासाहेब के के संकल्प के बारेमे जानेगे और उसके जीवन के अनमोल विचार भी जानने का प्रयास करेंगे..

संकल्प भूमि 23 सितम्बर 1917 बाबासाहेब का संकल्प

  • वडोदरा नरेश सयाजी राव गायकवाड़ से करार के अनुसार सन 1917 के सितंबर महीने के दूसरे सप्ताह में बाबासाहब अम्बेडकर अपने अग्रज बंधु के साथ बड़ौदा गए,

वडोदरा में बाबा साहब को रहनें और खाने की व्यवस्था स्वतः ही करनी थी, परंतु यह बात बड़ौदा में जंगल की आग की तरह पहले ही फैल गयी थी कि मुम्बई से एक महार युवक बड़ौदा के सचिवालय में नौकरी करने आ रहा है, फलस्वरूप किसी भी हिन्दू रेस्टोरेंट या धर्मशाला में विद्वान डा.अम्बेडकर को रहने का सहारा नहीं मिला, आखिर उन्होंने अपना नाम बदलकर बताया तब उन्हें एक पारसी धर्मशाला में जगह मिली

  • वडोदरा नरेश गायकवाड़ को डा.अम्बेडकर को वित्तमंत्री बनाने की प्रबल इच्छा थी पर अनुभव न होने की वजह से बाबासाहब नें सेना के सचिव पद को ही स्वीकार किया.

सचिवालय में डा.अम्बेडकर को अस्पृश्य होने के कारण बहुत बेइज्जती का सामना करना पड़ा उन्हें पीने के लिए पानी तक नहीं मिलता था चपरासियों द्वारा भी फाइलें दूर से ही फेंकी जाती थी, उनके आने और जाने के पहले फर्श पर पड़ी चटाइयां हटा दी जाती थीं, इस अमानुषीय अत्याचारों के बाद भी वे अपनी अधूरी पड़ी शिक्षा पूरी करने में हमेसा अग्रसर रहते थे पर उन्हें पढ़ाई के लिए ग्रंथालय में तभी जाने की अनुमति मिलती थी जब वहां खाली समय में दूसरा और कोई नही होता था, यह किसी महान विद्वान के साथ अमानवीय अपमान की एक पराकाष्ठा ही थी, जिसका मूल कारण था भारत में व्याप्त मनुवादी वर्ण व्यवस्था के जातिवादी आतंक के काले कानून का कहर.

एक दिन मनुवादी वर्ण व्यवस्था के आतंक नें सारी हद ही तोड़ दी बाबा साहब जिस पारसी धर्मशाला में रहते थे वहां एक दिन पारसियों का क्रोध से आग बबूला बड़ा झुंड हाथ में लाठियां लेकर आ पहुंचा, झुंड के एक व्यक्ति ने बाबासाहब से पूंछा तुम कौन हो बाबासाहब नें तुरंत जवाब दिया मैं एक हिन्दू हूँ, जवाब सुनकर उस व्यक्ति ने आगबबूला होकर कहा तुम कौन हो यह मैं अच्छी तरह जानता हूँ, तुमने हमारे अतिथि गृह को पूरा भ्रष्ट कर दिया तुम यहाँ से अभी तुरंत निकल जाओ, बाबासाहब नें अपनी सारी शक्ति इकट्ठा करके उनसे अनुरोध पूर्वक कहा अभी रात है मुझे आप केवल आठ घंटे की और मोहलत दीजिये सुबह मैं आपका यह आवास स्वयं ही खाली कर दूंगा, उस भीड़ ने तनिक भी देर नहीं लगाई और बाबासाहब का सारा सामान कमरे से बाहर सड़क पर फेंक दिया, तब बाबासाहब नें बहुत प्रयास किया पर रातभर के लिए भी उन्हें वहां कोई हिन्दू या मुसलमान आश्रय देने के लिए तैयार नहीं हुआ.

  • आखिर भूंखे प्यासे बाबासाहब रात में ही शहर से बाहर निकलने पर मजबूर हुए, और उन्होंने एक बाग में पेंड़ के नीचे रोते हुए सारी रात बिताई, ऊपर खुला आसमान और नीचे खुली जमीन आज दुनियाँ के सबसे बड़े विद्वान का यही एक एकलौता सहारा था,

बाबासाहेब का संकल्प Br.Ambedkar

संकल्प दिन यानी संकल्प भूमि

  •  जातियाँ तोड़कर एक समतामूलक समाज बनाने का बाबासाहेब का संकल्प 23 सितम्बर 1917

मै इतना पढ़ा लिखा होने के बावजूद भी मुझे इतना अपमान सहन करना पड़ रहा है तो मेरा समाज तो अनपढ़ है तो उनका क्या होगा?

और इसी तरह बाबासाहब ने 23 सेप्टम्बर 1917 को वडोदरा के एक बाग में पेंड़ के नीचे रोते हुए संकल्प लिया कि “मैं अपने दबे कुचले अस्पृश्य समूचे समाज को इस घिनौने दलदल से निकालने के लिए अपनी पूरी जिंदगी लगा दूंगा”, आज वडोदरा की वही जमीन बाबासाहब के “संकल्प भूमि ” के नाम से जानी जाती है जहां पर समूचे देश के अम्बेडकरवादी इकट्ठा होकर उनके संकल्प को दोहराने का सतत प्रयास जारी रखते हैं.

 

23 सेप्टम्बर 1917 हमे भूलना नही चाहिए अगर बाबा साहेब ने संकल्प नही लिया होता तो ना बहुजनो का कोई अस्तित्व होता ना कोई वजूद| आज हम सब बाबा साहब की वजह से इस भारत देश मे आजाद है, एक इंसान ने करोड़ों लोगों का सपना पूरा किया लेकिन करोड़ों मिलकर भी उस इन्सान का सपना (शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो) पूरा नही कर पाये सोंचने वाली बात है….

 

बाबासाहेब के अनमोल विचार

 

हमने संकल्प दिन के मोके पर बाबासाहेब के जीवन के कुस अनमोल विचार यहाँ पर पेस किए है कृपिया ईन विचारो को ओर लोगो तक पहोंचाने का कष्ट करे…

  • छीने हुए अधिकार भीख में नहीं मिलते, अधिकार वसूल करना होता है।
  • जो कौम अपना इतिहास नही जानती है, वह कौम कभी अपना इतिहास नही बना सकती है।
  • शिक्षा महिलाओं के लिए भी उतनी ही जरूरी है जितनी पुरुषों के लिए।
  • यदि हमें अपने पैरों पर खड़े होना है, अपने अधिकार के लिए लड़ना है, तो अपनी ताकत और बल को पहचानो। क्योंकि शक्ति और प्रतिष्ठा संघर्ष से ही मिलती है।
  • राजनीति में हिस्सा ना लेने का सबसे बड़ा दंड यह है कि अयोग्य व्यक्ति आप पर शासन करने लगता है।
  • बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए।
  • महात्‍मा आये और चले गये। परन्‍तु अछुत, अछुत ही बने हुए हैं।
  • वर्गहीन समाज गढ़ने से पहले समाज को जातिविहीन करना होगा।
  • महान प्रयासों को छोड़कर इस दुनिया में कुछ भी बहुमूल्‍य नहीं है।
  • यदि आप मन से स्वतंत्र हैं तभी आप वास्तव में स्वतंत्र हैं।
  • मंदिर जाने वाले लोगों की लंबी कतारें, जिस दिन पुस्तकालय की ओर बढ़ेंगी। उस दिन मेरे इस देश को महाशक्ति बनने से कोई रोक नही सकता है।
  • इस पूरी दुनिया में गरीब वही है, जो शिक्षित नहीं है। इसलिए आधी रोटी खा लेना, लेकिन अपने बच्चों को जरूर पढ़ाना।
  • ज्ञानी लोग किताबों की पूजा करते हैं, जबकि अज्ञानी लोग पत्थरों की पूजा करते हैं।
  • जिसे अपने दुखों से मुक्ति चाहिए, उसे लड़ना होगा। और जिससे लड़ना है उसे उससे पहले अच्छे से पढ़ना होगा। क्योंकि ज्ञान के बिना लड़ने गए तो आपकी हार निश्चित है।
  • यदि हम आधुनिक विकसित भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों को एक होना पड़ेगा।
  • संविधान केवल वकीलों का दस्‍तावेज नहीं है बल्कि यह जीवन जीने का एक माध्‍यम है।
  • एक इतिहासकार सटीक, ईमानदार और निष्‍पक्ष होना चाहिए।
  • जो झुक सकता है वो झुका भी सकता है।
  • संवैधानिक स्वतंत्रता का कोई अर्थ नहीं हैं जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता प्राप्त नहीं कर लेते।
  • अच्छा दिखने के लिए नहीं, बल्कि अच्छा बनने के लिए जिओ।
  • जीवन लंबा होने के बजाय महान होना चाहिए।
  • देश के विकास के लिए नौजवानों को आगे आना चाहियें।
  • जो धर्म जन्‍म से एक को श्रेष्‍ठ और दूसरे को नीच बताये वह धर्म नहीं, गुलाम बनाए रखने का षड़यंत्र है।
  • मैं राजनीतिक सुख भोगने नहीं बल्कि नीचे दबे हुए अपने भाईओं को अधिकार दिलाने आया हूँ।
  • हो सकता है कि समानता एक कल्पना हो, पर विकास के लिए यह ज़रूरी है।
  • शिक्षा वो शेरनी है। जो इसका दूध पिएगा वो दहाड़ेगा।
  • हमारे संविधान में मत का अधिकार एक ऐसी ताकत है जो कि किसी ब्रह्मास्त्र से कही अधिक ताकत रखता है।
  • मनुवाद को जड़ से समाप्‍त करना मेरे जीवन का प्रथम लक्ष्‍य है।
  • देश के विकास से पहले हमें अपनी बुद्धि के विकास की आवश्यकता है।
  • हिंदू धर्म में, विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
  • एक महान व्यक्ति एक प्रख्यात व्यक्ति से एक ही बिंदु पर भिन्न है कि महान व्यक्ति समाज का सेवक बनने के लिए तत्पर रहता है।
  • समाज में अनपढ़ लोग हैं ये हमारे समाज की समस्या नही है। लेकिन जब समाज के पढ़े लिखे लोग भी गलत बातों का समर्थन करने लगते हैं और गलत को सही दिखाने के लिए अपने बुद्धि का उपयोग करते हैं, यही हमारे समाज की समस्या है।
  • अन्याय से लड़ते हुए आपकी मौत हो जाती है, तो आपकी आने वाली पीढ़ियां उसका बदला जरूर लेंगी। और अगर अन्याय सहते हुए आपकी मौत हो जाती है, तो आपकी आने वाली पीढ़ियां भी गुलाम बनी रहेंगी।
  • मैं बहुत मुश्किल से इस कारवां को इस स्थिति तक लाया हूं। यदि मेरे लोग, मेरे सेनापति इस कारवां को आगे नहीं ले जा सकें, तो पीछे भी मत जाने देना।
  • मेरी प्रशंसा और जय-जय कार करने से अच्छा है, मेरे दिखाये गए मार्ग पर चलो।
  • शिक्षित बनो, संगठित रहो, संघर्ष करो
  • •• एक विचार को प्रसार की उतनी ही आवश्यकता होती है जितना कि एक पौधे को पानी की आवश्यकता होती है। नहीं तो दोनों मुरझाएंगे और मर जायेंगे।

कुर्पिया ईस पोस्ट को सभी बहुजन मूलनिवासी तक पहोंचाने में सहियोग करे..

 

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