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पूरे देश को किसानों का ऋणी होना चाहिए। किसान आंदोलन ने मजदूरों को बहुत बड़े झमेले से बचा लिया है।

पूरे देश को किसानों का ऋणी होना चाहिए, मजदूरों को खास तौर पर। किसान आंदोलन ने मजदूरों को बहुत बड़े झमेले से बचा लिया है।

सरकार बहादुर ने श्रम सुधार विधेयक भी पारित करा लिया था, उसका केवल नोटिफिकेशन जारी होना था।

काले कानूनों के खिलाफ दिल्ली की सीमाओं पर किसान बैठ कर रह गए, इसलिए नए श्रम कानून का नोटिफिकेशन टाल दिया गया।

अगर किसान आंदोलन नहीं हुआ होता या फिर मोदी जी की तपस्या के कारण किसान पस्त होकर अपने अपने घर लौट गए होते तो देश में नए श्रम कानून अब तक लागू हो गए होते। और शामत आ गई होती मजदूरों की, नौकरी पेशा लोगों की।

क्या है नए श्रम कानूनों में?

काम के घन्टे आठ से बढ़ाकर 12 करने का प्रावधान है।

वैसे तो सप्ताह में दो दिन का अवकाश देने का प्रावधान भी कानून में है, लेकिन दो बातें गौर करने लायक हैं।

1 – कानून कहता है कि ‘विशेष परिस्थितियों’ में नियोक्ता को मजदूरों का एक साप्ताहिक अवकाश रदद् करने का अधिकार होगा।

लेकिन कानून में ‘विशेष परिस्थितियों’ को परिभाषित नहीं किया गया है। इसका लाभ किसे मिलेगा? उसे जो नौकरी देता है। वह हर सप्ताह एक साप्ताहिक अवकाश खत्म कर देगा, विशेष परिस्थितियों का हवाला देकर, तो मजदूर उसका क्या उखाड़ लेगा?

कानून इस सम्बंध में भी मौन है कि अगर ‘विशेष परिस्थितियों’ में मजदूर का साप्ताहिक अवकाश खत्म किया जाता है, तो उसे उस दिन का पारिश्रमिक दिया जाएगा या नहीं।

जब कानून इस बारे में मौन है तो मानकर चलिए कि नियोक्ता भी मौन ही रहेगा। यानी, मजदूर को सप्ताह में छह दिन ही काम करना पड़ेगा।

इस समय उसे रोज आठ घन्टे के हिसाब से सप्ताह में 48 घन्टे काम करना पड़ता है, नया श्रम कानून लागू हो जाने के बाद उसे 72 घन्टे काम करना पड़ेगा।

2 – कानून में काम के घंटे बढ़ाकर आठ से 12 कर दिए गए हैं, लेकिन दो साप्ताहिक अवकाशों की ओट लेकर मजदूरी नहीं बढ़ाई गई है।

जबकि वास्तविकता यह है कि हम यदि यह भी मान लें कि मजदूरों का विशेष परिस्थितियों का हवाला देकर एक साप्ताहिक अवकाश नहीं मारा जाएगा, तब भी उन्हें हर सप्ताह साठ घन्टे काम करना होगा, जबकि इस समय 48 घन्टे करना पड़ता है।

मतलब, नया कानून लागू होने के बाद मजदूरों को हर सप्ताह 12 घन्टे ज्यादा काम करना पड़ेगा, और अगर एक साप्ताहिक अवकाश भी मार दिया गया तो हर सप्ताह 24 घन्टे काम करना पड़ेगा। उतने काम से ड्योढ़ा, जितना इस समय कर रहे हैं, लेकिन मजदूरी बढ़ेगी नहीं।

जिस देश में बिना किसी कानून के ही कहीं कहीं काम के घंटे आठ से बढ़ाकर नौ-दस कर दिए गए हों, वहां अगर 12 घन्टे काम कराने का कानून ही बन जाए तो क्या होगा, कल्पना ही की जा सकती है।

किसानों का धन्यवाद कि फिलहाल यह कानून ठंडे बस्ते में चला गया है।

ब्लूमबर्ग का कहना है कि यह कानून लागू न होने से भारत बहुत पिछड़ जाएगा, क्योंकि यहां निवेश नहीं आएगा, नए कारखाने नहीं लगेंगे, आदि-इत्यादि।

ब्लूमबर्ग का यह भी कहना है कि अब तो मोदी जी 2024 के बाद ही यह कानून लागू कर पाएंगे। कई राज्यों के विधानसभा चुनाव और फिर आम चुनाव 2024 से पहले उन्हें ये कानून लागू नहीं करने देंगे।

नोट-पोस्ट के सभी तथ्य ब्लूमबर्ग से लिए गए हैं जो कि अमेरिका का एक बहुत बड़ा मिडिया संस्थान है।

– माथा तब ठनका जब भास्कर में ब्लूमबर्ग के हवाले से श्रम सुधार कानूनों का नोटिफिकेशन टलने की सम्भावना जताने वाली खबर आई। प्रार्थी का ध्यान उस खबर के बाद ही इस विषय पर गया है।

– प्रार्थी व्यक्तिगत तौर पर इन कानूनों को लागू करने के पक्ष में है, क्योंकि मोदी जी के ज्यादातर समर्थक नौकरी पेशा ही हैं।

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