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Bamcef and DS4 एक कर्मचारी की वजह से खड़ा हुआ देश का सबसे बड़ा बहुजन आंदोलन!

Bamcef and DS4 एक कर्मचारी की वजह से खड़ा हुआ देश का सबसे बड़ा बहुजन आंदोलन!
ये है बामसेफ बनने की कहानी, जिसने बदल दी देश की राजनीति, इसे राजस्थान के दीनाभाना, महाराष्ट्र के डीके खापर्डे और पंजाब के कांशीराम ने बनाया
एक कर्मचारी की वजह से खड़ा हुआ देश का सबसे बड़ा बहुजन आंदोलन!

Bamcef and DS4 एक कर्मचारी की वजह से खड़ा हुआ देश का सबसे बड़ा बहुजन आंदोलन!

Bamcef and DS4 एक कर्मचारी की वजह से खड़ा हुआ देश का सबसे बड़ा बहुजन आंदोलन!

कैसे बना Bamcef and DS4

जयपुर, राजस्थान के रहने वाले दीनाभाना पुणे की गोला बारूद फैक्टरी में चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी के रूप में काम कर रहे थे. वे वहां की एससी, एसटी वेलफेयर एसोसिएशन से जुड़े हुए थे. जब उन्होंने आंबेडकर जयंती पर छुट्टी को लेकर हंगामा किया. बदले में उन्हें सस्पेंड कर दिया गया. वो वाल्मीकि समाज से आते थे. उनका साथ देने वाले डीके खापर्डे का भी यही हश्न हुआ. वे महार जाति से थे. कांशीराम वहां क्लास वन अधिकारी के रूप में काम कर रहे थे. जब पूरा मामला उन्हें पता चला तो उन्होंने कहा कि बाबा साहब आंबेडकर की जयंती पर छुट्टी न देने वाले की जब तक छुट्टी न कर दूं, तब तक चैन से नहीं बैठ सकता.
ये वो घटना है जिसने दलित कर्मचारियों और अधिकारियों के हक के लिए काम करने वाले सबसे बड़े संगठन बामसेफ BAMCEF बैकवर्ड एंड माइनॉरिटी कम्युनिटीज एंप्लाई फेडरेशन (Backward And Minority Communities Employees Federation) को जन्म दिया. जो इतनी बड़ी ताकत है कि बसपा जैसी पार्टी इसके बिना इतनी ऊंचाई नहीं हासिल कर सकती थी. कांशीराम के दौर तक इस संगठन ने बसपा के लिए वैसा ही काम किया जैसा भाजपा के लिए आरएसएस करता है. लेकिन दावा है कि इस चुनाव में वो बसपा के साथ नहीं है.

 

मायावती से नाराज है BAMCEF?

आमतौर पर लोग यह जानते हैं कि बामसेफ की स्थापना कांशीराम ने की. लेकिन सच ये है कि इसकी नींव तो दीनाभाना और डीके खापर्डे की वजह से रखी गई. ये दोनों पहले और दूसरे संस्थापक थे. कांशीराम तीसरे संस्थापक रहे. बामसेफ के अध्यक्ष वामन मेश्राम बताते हैं, “दीनाभाना बहाल हुए. उनका ट्रांसफर दिल्ली कर दिया गया. मेश्राम के मुताबिक कांशीराम ने उस अधिकारी की पिटाई की, जिसने उन्हें सस्पेंड किया था. फिर कांशीराम ने सोचा कि जब हमारे जैसे अधिकारियों पर अन्याय होता है तो देश के और दलितों, पिछड़ों पर कितना होता होगा. कांशीराम ने नौकरी छोड़ दी और बामसेफ बनाया.”
मेश्राम के मुताबिक, “कांशीराम तीसरे नंबर पर होकर भी पहले नंबर पर इसलिए आए, क्योंकि उन्होंने नौकरी छोड़ दी थी. उनके पास समय ही समय था. वे उस एससी, एसटी वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष बना दिए गए, जिससे दीनाभाना जुड़े हुए थे. फिर उन्हें समझ में आया कि केवल एससी, एसटी के लिए काम करने से बात नहीं बनेगी. परिवर्तन के लिए एससी, एसटी, ओबीसी और इनसे कन्वर्टेट अल्पसंख्यकों को जोड़ना होगा.”
फिर हुआ बामसेफ का जन्म
6 दिसंबर 1973 को ऐसा एक संगठन बनाने की कल्पना की गई. फिर 6 दिसंबर 1978 को राष्ट्रपति भवन के सामने बोट क्लब मैदान पर इसकी औपचारिक स्थापना हुई. कन्वेंशन का नाम था ‘बर्थ ऑफ बामसेफ’. मेश्राम कहते हैं कि यदि दीनाभाना और डीके खापर्डे न होते तो न बामसेफ होता और न आंबेडकरवादी आंदोलन चल रह होता.
बामसेफ के बैनर तले कांशीराम और उनके साथियों ने दलितों पर अत्याचारों का विरोध किया. कांशीराम ने दिल्ली, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, पंजाब, हरियाणा और उत्तर प्रदेश में दलित कर्मचारियों का मजबूत संगठन बनाया. समझाया कि अगर उन्हें अपना उत्थान करना है तो मनुवादी सामाजिक व्यवस्था को तोड़ना जरूरी है.

BAMCEF chief waman meshram

Waman Meshram बताते हैं, “कई अधिकारी और कर्मचारी इस संगठन को चलाने के लिए अपनी तनख्वाह का अधिकांश हिस्सा दे देते थे. देश में इस वक्त 31 राज्यों के 542 जिलों में करीब 25 लाख लोग संगठन से जुड़े हए हैं. इसके 57 अनुशांगिक संगठन हैं. जिसमें कई प्रोफेशन के लोग हैं. राष्ट्रीय मूल निवासी बहुजन कर्मचारी संघ नाम से हमारा ट्रेड यूनियन संगठन भी है, जो एससी, एसटी, ओबीसी एवं माइनॉरिटी कर्मचारियों के हितों को सुरक्षित रखने का काम करता है.”
तो फिर DS4 क्यों बना?
बामसेफ के जरिए कर्मचारियों अधिकारियों को गोलबंद करने काम जारी था. इसके साथ-साथ सामान्य बहुजनों को संगठित करने के लिए कांशीराम ने 1981 में डीएस-4 (दलित शोषित समाज संघर्ष समिति) की स्थापना की. इसका नारा था ‘ठाकुर, ब्राह्मण, बनिया छोड़, बाकी सब हैं डीएस-4’. यह राजनीतिक मंच नहीं था, लेकिन इसके जरिए कांशीराम न सिर्फ दलितों बल्कि अल्पसंख्यकों के बीच भी एक तरह की गोलबंदी कर रहे थे. डीएस-4 के तहत ही उन्होंने जनसंपर्क अभियान चलाया. साइकिल मार्च निकाला, जिसने सात राज्यों में लगभग 3,000 किलोमीटर की यात्रा की. अगड़ी जाति के खिलाफ नारों के जरिए वे दलितों, पिछड़ों को जोड़ते रहे.
फिर बसपा बनाई
वे यहीं रुकने वाले नहीं थे. साल 1984 में कांशीराम ने फैसला लिया कि ‘राजनीतिक सत्ता ऐसी चाभी है जिससे सभी ताले खोले जा सकते हैं’. बताते हैं कि बामसेफ के कई संस्थापक सदस्य कांशीराम के चुने इस नए रास्ते से अलग हो गए. हालांकि उनके साथ जुड़े रहने वाले बामसेफ कार्यकर्ता भी कम नहीं थे. बामसेफ के दूसरे संस्थापक सदस्य डीके खापर्डे ने इसकी कमान संभाली और यह आंदोलन जारी रहा.

बसपा के संस्थापक कांशीराम

समाजशास्त्री प्रो. विवेक कुमार लिखते हैं कि खापर्डे ने इस आंदोलन को ‘बहुजन’ पहचान के साथ-साथ ‘मूल निवासियों‘ से भी जोड़ा. मूलनिवासी संकल्पना बताती है कि, ‘मनुवादी ही आर्य-आक्रांता हैं जिन्होंने यहां के ‘मूलनिवासियों’ को छल से सत्ता-संसाधन से वंचित कर दिया है. उनके आगमन से पहले ‘मूलनिवासी’ इस भारतभूमि के स्वामी हुआ करते थे’.

बामसेफ ने शिक्षित वर्ग पर ही क्यों लक्ष्य रखा?

बामसेफ के मुताबिक शिक्षित वर्ग को जीवन के नए दृष्टिकोण का पता चलता है और इस दृष्टिकोण के तहत यह वर्ग अपने वर्तमान जीवन स्तर की समीक्षा करता है, जिससे उसे अपने स्तर का पता चलता है. अगर उसे जीवन स्तर घटिया नजर आए तो उसे बदलने के लिए सोचता है. ऐसी व्यवस्था के सपने देखता है जिसमें जीवन स्तर घटिया न हो, इसलिए बुद्धिजीवी वर्ग नए समाज और व्यवस्था का सपना देखता है.

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